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भोपाल पुलिस में फिर लौटे ‘अंगद’, डीजीपी के निर्देशों की खुली अवहेलना

भोपाल-राजधानी भोपाल के थानों में एक बार फिर ‘अंगदों’ की वापसी ने पुलिस महकमे की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं। डीजीपी के सख्त निर्देशों पर हटाए गए पुलिसकर्मी अब मौखिक आदेशों के जरिए फिर से पुराने थानों में लौट आए हैं,।जिसमें मिसरोद, बागसेवनिया, अशोका गार्डन, क्राइम ब्रांच समेत कई थानों में पहले हटाए गए कर्मचारियों की वापसी हो गई है।

क्राइम ब्रांच की बात करें तो यहां के अधिकारी अपने चहेतों को छोड़ना ही नहीं चाहते क्योंकि इन्हीं बचे कूचे कर्मचारियों से क्राइम ब्रांच चल रही ऐसा माना जा रहा है, जबकि इनके काम फील्ड ड्यूटी से तो दूर इनके तैनाती से भी नहीं हो रहे पूरे, इनके जामें होने से अकसर विवादों में और सुर्खियों ने रहता है क्राइम ब्रांच। 5 साल से अधिक हो गए जमें पर मजाल की अंगदो की सूची में अजाए, इसके बावजूद अधिकारियों को नहीं दिख रहे है यह आधा दर्जन अंगद, क्राइम ब्रांच को सुर्खियों में लाने ठेका जो इन्होंने ले रखा है..अधिकारी भी नस्मस्तक है इनके सामने…. सूत्र तो बहुत कुछ बताते हैं लेकिन सब कुछ लिख पाना संभव नहीं है

यह वो 6 कर्मचारी है जो क्राइम ब्रांच में 5 साल से अधिक हो जाने के बाद भी जमे हुए हैं, जो साफ तौर पर तबादला आदेशों की अनदेखी का सबूत हैं।

कार्यवाहक एएसआई रामकुमार गौतम ( 2576) इन साहब ने अपराध शाखा में 02.05.2016 को रखे थे अपने शुभ कदम,आज दिनांक तक उनके कदम किसी और थाने में नहीं पड़े क्योंकि क्राइम ब्रांच की पूरी कलाकारी और लफड़ेबाजी की जिम्मेदारी इन्हीं के जिम्मे जो दे रखी है अधिकारियों ने ऐसा पुलिस सूत्रों का कहना है, मनमर्जी नौकरी के मालिक हो गए रामकुमार गौतम, दो बार विवादों में रहने के बाद हो चुके तबादलों के बाद भी नहीं दी आमद, क्योंकि क्राइम ब्रांच का नहीं छूट रहा मोह, क्या लेते है सेवाएं और क्या देते है अधिकारियों को सेवाएं… कौन जानता है, कैसे बचे अंगदो की सूची से अब तक, साहब के हाथों डीसीपी अपराध के रीडर शिप का काम है…. पर तबादला सूची में साइबर क्राइम ब्रांच किया गया क्राइम ब्रांच से तबादला, अब जब रीडर का काम देखते है एएसआई गौतम तो क्या करेंगे साइबर का काम, कौन इनके तबादले का जिम्मेदार….

इसी तरह कार्यवाहक एएसआई धीरज पांडे जो 16.05.2017 से और आरक्षक पलकराज चौधरी 23.04.2017 से क्राइम ब्रांच में तैनात है, दोनों k पास कोई काम नहीं सिर्फ एडीसीपी कार्यालय में तैनात है, इसी के साथ आरक्षक नीरज यादव 23.04.2017, आरक्षक मुकेश कुमार सोलंकी 21.11.2016 और प्रधान आरक्षक गजराज सिंह 07.08.2020 से क्राइम ब्रांच में तैनात है, क्या यह आरक्षक अंगदो से कम है या अधिकारियों के चाहेते, कौन जिम्मेदार और किस सूची में दिखेगा इनका दूसरे थानों के लिए नाम…

क्राइम ब्रांच में पदस्थ कुछ आरक्षक तो खुलेआम सोशल मीडिया पर खुद को ‘अंगद’ कहते हुए स्टेटस डाल रहे हैं — “मैं अंगद हूं, जहां जाता हूं जम जाता हूं”, जो डीजीपी के निर्देशों को खुली चुनौती जैसा लगता है।

राजधानी में बीते दिनों विभागीय जांच के चलते मिसरोद थाना प्रभारी मनीष राज भदौरिया को और क्राइम ब्रांच में पदस्थ आरक्षक मुरली शर्मा को लाइन हाजिर किया गया है, लेकिन उसी केस में शामिल एक एएसआई और आरक्षक पर अधिकारियों की नहीं पड़ी अब तक नजर।

यह वो एएसआई और आरक्षक जो बाकी रह गए

एएसआई दिनेश खजुरिया वर्तमान में थाना अशोका गार्डन में और एहसान खान (अरेरा हिल्स में नौकरी कर रहे अब भी बचे हुए हैं,

वहीं अंगदो में शुमार प्रधान आरक्षक आलोक तिवारी, जिनकी नौकरी अधिकारी नहीं ले पाते, यह साहब खुद करते है अपने हिसाब से लोगोनक कल्याण….

आलोक तिवारी पर हबीबगंज में पदस्थ रहते हुए एक महिला से पैसे लेने के आरोप में लाइन हाजिर किया गया था, अधिकारियों की मजाल जो लाइन में रख ले, आलोक तिवारी ने चंद दिनों में अरेरा हिल्स करा लिया था अपना तबादला, यहां भी साहब को नहीं आया मज़ा तो साहब ने अपने रिश्तेदार टीआई के पास दे दी आमद।

अब आलोक तिवारी कोहेफिज़ा थाने में मनमर्जी से तैनात हो गए, बताया जाता है कि संबंधित थाना प्रभारी उनके रिश्तेदार हैं, ऐसा वो खुद कहते नजर आते है।

इन घटनाओं से साफ है कि राजधानी की पुलिस व्यवस्था अब भी रिश्तेदारी, जुगाड़ और मौखिक आदेशों पर चल ही रही है — न कि नियमों और आदेशों पर। सवाल ये है कि क्या डीजीपी के निर्देश अब सिर्फ कागजों तक सीमित रह गए हैं?

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